रविवार, 13 जनवरी 2019

मुक्तक

मुश्किलों में हँस के जीना जानता
हूँ, मैं..!!

हार के हर विष को पीना जानता
हूँ, मैं..!!

व्यर्थ  के  आरोप  दुनिया भर  के
अंदेशे..!!

मुस्कुराकर   होंठ   सीना  जानता
हूँ, मैं....!!

©योगेन्द्र भारत

मंगलवार, 24 अक्तूबर 2017

अपनी प्रथम हार को लेकर


अपनी प्रथम हार को लेकर

मन-मन भींच रहा हूँ, मैं !

है आसमां बिल्कुल नीरव,

फिर भी भींग रहा हूँ, मैं !

माना स्थिति बड़ी विकट है

कुछ तो सीख रहा हूँ, मैं !

आँसु को पलकों पे सहजकर

सपने सींच रहा हूँ, मै !

असफलता के रस को चखकर

जीना सीख रहा हूँ, मैं !

सूनी पड़ी हथेली पर नयी रेखा

खीच रहा हूँ, मैं !

अपनी प्रथम हार को लेकर

मन हीं मन भींच रहा हूँ, मैं !

© योगेन्द्र भारत (कानपुर)

मंगलवार, 10 जनवरी 2017

मुक्तक- योगेन्द्राश

1.
"तुम्हारे साथ कि जरूरत थी...
'इक पल' में तुम गुजर गये..,
'इक पल' भी तुम न रूके...
'इक पल' में हम बिखर गये.. "

2.
"लफ़्ज होंठो पर टिके आवाज घुँघरूओं से हो,
ऐ जान ! तेरे हुस्न का हिसाब जुगनुओं से हो,
इश्क - विश्क, प्यार - व्यार बेहिसाब रूंह में हो,
ख्वाब हैं तेरी मांग का श्रृंगार मेरे खूं से हो..!!"

रविवार, 1 जनवरी 2017

नरेंद्र मोदी



अपने वायदे अनुसार मैं आपके बीच माननीय प्रधानमंत्री एवं उनकी सरकार पर आधारित एक विस्तृत लेख लेकर हाजिर हूँ । आपकी प्रतिक्रिया सादर आमंत्रित है ।

      नरेन्द्र मोदी.......! वर्तमान राजनीति का वो सम्राट जिनके विराट व्यक्तित्व ने राजनीति के मायने बदल दिए । पंगु पड़ चुकी राजनैतिक पुरोधाओं की नसो को यह सोचने को मजबूर करना कि राजनीति अब ठण्डे खून से नहीं होने वाली अतः उनका स्वयं को इस योग्य परिणत करने हेतु प्रेरित होना की वो जनमानस की आवेशित आकंक्षाओं के गर्म उबाल को स्वंय की रगो में प्रवाहित कर सके, निःसन्देह एक बड़ी उपलब्धी हैं ।
      क्या आप जानते है ? नरेंद्र का अर्थ उस व्यक्ति से है जो बिच्छू, साँप आदि का विष दूर करने की कला जानता हो । ये पूरे भारत के लिए बड़े गर्व कि बात हैं कि माननीय प्रधानमंत्री जी अपने नाम के अर्थ को निष्पादित भी कर रहे है.., इतिहास में ऐसे उदाहरण बड़े कम देखने को मिलते है ।
     
(1).
      सर्वप्रथम यह जान ले कि विकास एक सतत प्रक्रिया हैं । सरकारे चाहे जितनी निकम्मी हो, किसी भी देश का व्यक्ति स्वयं के स्थायित्व के लिए प्रयास करता हैं फलस्वरूप विकास की प्रक्रिया कभी नहीं ठहरती । परन्तु अटल सत्य ये भी हैं कि जहां एक लोकप्रिय सरकार अपने नागरिको को तरक्की हेतु सकारात्मक माहौल और आत्मविश्वास प्रदान करती हैं वही एक निकम्मी और धूर्त सरकार नकारात्मकता का प्रचार करके अपने जनमानस को हतोत्साहित करती है.., तो यह साफ है कि सारा खेल आत्मविश्वास का ही हैं ।
   
   मुझे गर्व है कि मेरे देश के प्रधानमंत्री ने मुझे सदैव आत्मविश्वास सौंपा है ।

(2).
      संसार में दो प्रकार के व्यक्ति होते है.., एक वे जो आधे भरे हुए पानी के गिलास का आधा खाली भाग देखते हैं और दूसरे वे जो आधा भरा हुआ । फैसला आपको करना हैं कि आपको किसका साथ देना हैं.., स्थितियां वैसी ही हैं फर्क सिर्फ सोच का है ।
     
   ‘मुझे गर्व हैं कि मेरे देश के प्रधानमंत्री ने मुझे सदैव सकारात्मकता सौंपी है ।

(3).
      सरकार एक बड़ा ही विस्तृत अर्थो वाला शब्द है....मेरी समझ के अनुसार सरकारे दो प्रकार की होती हैं.., पहली वो जो केवल हमारी उम्मीदों और भावनाओं से खेलती है जिसके फलस्वरूप वे ऐसी नीतियां ऐसी योजनाओं का अविष्कार करती हैं जिसको बिना यथार्थ की लैब में जांचे-परखे हुए सीधे जनमानस के प्रयोग हेतु भेज दिया गया है..., मजे की बात ये हैं कि अब तक के राजनैतिक इतिहास में ऐसी लोक-लुभावनी योजनाएं सफल नहीं हो सकी है..। दूसरी वो सरकार होती हैं जो किसी भी योजना को प्रयोग में लाने से पहले उसके सारे पहलुओं पर पूरी एकाग्रता से न केवल विचार करती है बल्कि योजना पूरी तरह सफल हो इसके लिए अच्छी तरह से अनुसंधान भी करती है.., ध्यान योग्य बात ये हैं कि वर्तमान ने सदैव ही ऐसी योजनाओं का समर्थन करते हुए एक स्वर्णिम इतिहास का निर्माण किया है । अब फैसला आपको करना हैं कि आप किस सरकार के समर्थक है ।
      
    मुझे गर्व हैं कि मेरे देश के प्रधानमंत्री की तपस्या ने हर एक योजना को सफल बनाया है ।


वैसे तो मैं अपने तीनों पैरा के माध्यम से काफी कुछ व्यक्त कर चुका हूँ । परन्तु एक बात जो अभी भी आप सबसे कहना बाकी है..., वो शायद बड़ी महत्वपूर्ण है । अपनी बात को आपके बीच रखने के लिए मैं हालहिं में अपने साथ घटित एक छोटे से दृष्टांत को आप सबके साथ बांटना चाहता हूँ :-
      बात कुछ दस-बारह रोज पहले कि हैं, मैं पैसे निकालने के लिए एटीएम की लाइन में खड़ा हुआ था कि तभी मेरे बिल्कुल पीछे खड़े एक नवयुवक ने मुझसे कहा, ‘‘मोदी ने तो लोगो को मूर्ख बनाकर रख दिया है.., बताईये घर में खाने को राशन तक नहीं हैं लोगो के...बेचारो के पास बस एक ही काम रह गया हैं सुबह उठो हाथ-मुंह धुलो और लग जाओ लाइन में...सब जानते है कि काल धन देश के बड़े उद्योगपतियों के पास हैं लेकिन अब ये सूट-बूट की सरकार है भइया तो कहां उन बड़े लोगो को पकड़ेगी, मरेगा तो बेचारा गरीब आदमी...फलाना....फलाना...फलाना.. आश्चर्यजनक तथ्यों से भरी यहीं कुछ पाँच मिनट की झटपटाहट । और आप यकीन मानियें कि वो नवयुवक ये सब कहता रहा और एक लम्बी कतार में कोई भी एक व्यक्ति उसकी इस बात पर ‘हां..न’ कुछ भी न बोला,  वरना अगर किसी विषय को लेकर निराशा या क्रोध का माहौल होता हैं तो केवल आपको मुंह खोलकर जबान दिखाने भर की जरूरत हैं लोगो खुद ब खुद आपसे आपकी भड़ास निकलवा लेंगे । न जाने मुझे क्या पड़ी थी कि मैं बड़ा दार्शनिक अंदाज में उससे बोल पड़ा ‘कुछ दिन सब्र करो यार..सब नार्मल हो जाएगा ।’ वो तपाक से बोला...‘ये तो भक्त वाली बात है ।’ उसने इतनी तीव्रता से जवाब दिया कि मानो उसने किसी से शर्त लगाई हो कि वो सबसे ज्यादा लोगो को ‘भक्त’ उपाधि प्रदान करेगा..., अब मैं उससे भला क्या कहता....मैं हल्का सा मुस्कुराया और उसे ‘धन्यवाद !’ कहा..., इससे ज्यादा कुछ...न तो मैं उससे कहना चाहता था, और न वो इस योग्य कि वो ज्यादा समझ सके ।

विशेष- 
      मैं अपना दूसरा लेख लेकर जल्द ही हाजिर होऊंगा.., जिसमें मैं भक्त होना क्या होता हैं इस पर चर्चा करूँगा । आप इंतजाररत रहे ।


गुरुवार, 17 दिसंबर 2015

लघुकथा एक परिचय

अगर बात लघुकथा की कि जाए तो हम साधारण अर्थ में इसे कहानी का संक्षिप्त रूप कह सकते है। आज की इस दौड़ती-भागती जिंदगी में लघुकथाओं ने क्या आम और क्या खास दोनो ही वर्गों में अपनी एक विशिष्ट पैठ बनाई हैं ।

लघुकथाओं का कथानक साधारणतय: किसी विशिष्ट पल और उसके संवाद को प्रदर्शित करता हैं । इसमें समान्यत: एक या दो पात्रो के माध्यम से कथा की रचना की जाती हैं जो कभी काल्पनिक या कभी सच्ची घटना पर आधारित हो सकती हैं ।

लेखन किसी भी विधा में किया जाए उसका उद्देश्य समाज के भीतर नैतिक मूल्यों एवं सामाजिक सरोकार को बल प्रदान करना हैं । सामान्यत: लेखक अपनी लेखनी से समाज के लोगो को सत्य एवं असत्य, धर्म एवं अधर्म, स्वार्थ एवं निस्वार्थ के मध्य कि बारीक रेखा से परिचित कराता हैं । ठीक इसी प्रकार से कोई भी लघुकथा तब तक साहित्यिक द्रष्टि से सफल नहीं मानी जा सकती हैं जब तक कि उसकी कथावस्तु शिक्षाप्रद न हो ।

अन्य साहित्यक रचनाओं कि भाँति लघुकथा का शीर्षक भी सटीक होना चाहिए जिससे कि पाठक के चित्त में रोचकता के तत्व को जन्मां जा सके । किसी भी साहित्यक रचना का शीर्षक उसकी विषय-वस्तु को दर्शाता हैं अतैव लेखक को शीर्षक का चुनाव उसकी रचना के भावार्थ के आधार पर ही करना चाहिए ।

कहानी की भाँति लघुकथा के पात्रो का नामकरण बड़ी ही सावधानी से करना चाहिए जिससे कथा कि रोचकता एवं सजीवता बनी रहे; उदाहरण के तौर पर ग्रामीण आंचल की किसी घटना को व्यक्त करने के लिए पात्रो का नामकरण ग्रामीण परिवेश के आधार पर गढ़ा जाना चाहिए जिससे कि पाठक कथा कि सजीवता को महसूस कर सके ।

अगर इस सम्बन्ध में प्रश्न किया जाए कि लघुकथा का आकार कितने शब्दो का होना चाहिए ? तो इसका उत्तर किसी भी तरह से सरल न होगा.....कहीं भी इस सम्बन्ध में किसी भी प्रकार का वर्णन नहीं मिलता हैं जो लघुकथा को किसी शाब्दिक सीमा में बाँधता हो । अत: इस आधार पर ये कहा जा सकता है कि लघुकथा कितने भी शब्दों कि हो सकती हैं बस वो कहानी का रूप न लेने पाएं.....परन्तु फिर भी मेरे विचार से किसी भी लघुकथा के सृजन हेतु अधिकतम पाँच सौ शब्द उचित होंगे ।

धन्यवाद !

बुधवार, 16 दिसंबर 2015

जवाब (लघुकथा- 1)

आज बड़ा लेट कर दिया आने में..., देर से सोकर उठे थे क्या?’ कालेज में अनुराग बाबू के साथ पढ़ाने वाले उनके पड़ोसी सुदेश ने देरी का कारण पूँछते हुए कहा ।
हाँ कुछ एक मेहमानो को स्टेशन तक छोड़कर आना था, बस उन्हे ही विदा किया और चला आया आपके पास, आखिर घर हो या कालेज आपसे दूर कैसे रह सकता हूँ ।हँसमुख मिजाजी अनुराग बाबू देरी का कारण बताते हुए बोले ।
बड़ा रिश्तेदार-विश्तेदार पधारे रहते हैं आपके घर में हमारे घर में तो कभी कोई आता ही नहीं जैसे ।सुदेश ने शरारती लहेजे में कहा ।
अब आप ठहरे बैचलर और मैं परिवार वाला आखिर अब इतना तो फर्क होता ही हैं एक शादीशुदा और गैर शादीशुदा व्यक्ति में ।अनुराग बाबू ने लगभग एक शिक्षक कि भाँति सुदेश को समझाते हुए उनसे ये सब कहा ।
हाँ वो तो हैं अनुराग जी, लगता हैं आप ईशारो ही ईशारों और कुछ ही कह रहे हैं...।सुदेश ने लगभग मुस्कुराते हुए कहा ।
अब मैं ठहरा सीधा सरल आदमी ऊपर से गणित का शिक्षक आपको भला कौन सा मौन सन्देश सुनाने लगा ।अनुराग बाबू बड़े ही भोलेपन से बोले ।
लेकिन अनुराग बाबू के इस जवाब के प्रत्युत्तर में सुदेश कुछ भी न बोले मानो कि वो कहीं और ही विचारो में मग्न हो ।
कहाँ खो गये सुदेश जी..!अनुराग बाबू ।
नहीं...नहीं कहीं नहीं बस..!सुदेश ।
अरे, कहीं तो...।लगभग सुदेश को उकसाते हुए अंदाज में अनुराग बाबू ने कहा ।
वो, कुछ नहीं...बस एक बात कहनी थी आपसे...गर आप बुरा न माने तो ।सुदेश ने थोड़ा झिझकते हुए अनुराग बाबू से कहा ।
अरे, ऐसी कौन सी बात कहने जा रहे है सुदेश भाई...भूमिका-वूमिका मत बनाइए बस कह डालिए फटाफट जो भी कहना हैं ।अनुराग बाबू ने हल्के फुल्के अंदाज में जवाब देते हुए कहा ।
वो मिश्रा जी हैं न मेरे पड़ोस वाले जो आपके गाँव के हैं, मैंने उनको किराने वाले से बात करते हुए सुना था कि भाभी जी अपने मायके पक्ष के रिश्तेदारो को ज्यादा तवज्जो देती है बजाय आपके.., अब मुझे ये तो नहीं पता हैं कि उनकी बात में कितना सच हैं और कितना झूठ...मैंने तो बस जो सुना कह दिया आपसे अब इतना तो...अनुराग जी आप सुन तो रहे है न...अपनी बात को समाप्त करने से पहले ही अनुराग बाबू के नजरंदाजगी भरे लहेजे को देखकर सुदेश को उनसे कहना पड़ा ।
अरे, माफ करिएगा यार सुदेश भाई मैं कहीं और ही खों गया था इसलिए जरा आपकी बात को ध्यान नहीं दे पाया ।अनुराग बाबू ने लगभग सुदेश कि आँखो में देखते हुए उनसे ये सब कहा ।
और इतना सुनकर सुदेश शिक्षक कक्ष से उठकर कक्षा के लिए ऐसे चल दिए कि मानो उन्हें अनुराग बाबू से उचित जवाब मिल गया हो ।

खुद में भगवान नजर आ जाए ।

1   

     
चार दिवारी दुनिया तेरी

पतझड़ पावन बहार हैं,

खुला आसमां प्रेम दिखाए

मगर ये सब बेकार हैं ।


यूँ समेट ली हैं ये दुनिया

मानव ने चौखाटे में,

अलग-अलग छड़ रंग दिखाए

नए-नए भिन्न मुखौटे में ।


फुदक रही ये जीवन-धारा

इस सीमित गलियारे में

मानो पंक्षी घर बनाए

समंदर के सिरहाने में ।


न प्रताप न संयम तुझमें

न प्रेम कि ज्वाला हैं,

जहाँ भी नजर उठाकर देखो

वहाँ गड़बड़ घोटाला हैं ।


जीवन में न रंग बचा हैं,

मानो फीका ये संसार हैं,

छोटा सा परिवार बनाकर

सोचे जिम्मेदार हैं ।

यूँ जो अगर जिम्मेदारी

कर्तव्य समझ में आ जाए,

सच मानलो इस दुनिया में

राम, रहीम फिर आ जाए ।


तो कर वादा हे! मानव

अपने इस परिवार से,

सीमित से गलियार नहीं

इस पूरे संसार से ।


करे भला तू जाति का अपनी

मानव तेरी जाति हैं,

मानव का हैं धर्म वहीं जिस

धर्म में विश्व-शांति हैं ।


आँखो को जो ये पूरा

संसार नजर में आ जाए,

सच मानलो दुनिया में

इंसान नजर में आ जाए ।


फैल जाएगी प्यार-मोहब्बत

इस पूरे संसार में,

जो गर मानव को खुद में

भगवान नजर में आ जाए ।


2.